Wednesday, 9 May 2018

वट सावित्री व्रत कथा, पूजा विधि और इसका महत्व | वट सावित्री व्रत 2018 | Nandani Tutorial

वट सावित्री व्रत कथा, पूजा विधि, पूजा की तिथि और इसका महत्व


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आज व्रत सावित्री पूजा हैं, जो भारतीय महिलाओ द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाये उपवास कर अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिये रखती हैं। यह व्रत भारत के अलग-अलग जगहों में अलग-अलग तिथि में रखा जाता है।
1) उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। तदनुसार इस वर्ष गुरुवार 15 मई 2018 को वट सावित्री व्रत मनाया जाएगा।
2) और महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होता है। जोकि 27 जून को होगा। इस व्रत का नाम सावित्री के नाम पर रखा गया है| उत्तर भारत में इसे व्रत सावित्री के नाम से मनाया जाता है जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में इसे वट पूर्णिमा व्रत के नान से मनाया जाता है|
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वाट सावित्री व्रत कथा

ऐसा कहा जाता हैं क़ि सावित्री अपने पति सत्यवान, जिनकी आयु सीमाबध्य थी रह रही थी। सत्यवान की मृत्यु का समय निकट आ गयी था, एक दिन वह वर्गद के पेड़ से लकड़ी काट रहा था, तो उसे यमराज के भेजे हुए साँप ने काट लिया। सावित्री का हाल बेहाल था। उसने यमराज से प्राथना की उसके पति के प्राण वापिस कर दे, यमराज के मना करने पर वह उनके पीछे पीछे चल पड़ी।यमराज ने उसे कई प्रस्ताव दिए पर वह पति के साथ ही रहने के बात पर वो अपने पति के साथ ही जाने के बात पर अरी रही।अंत में यमराज को उसकी पति भक्ति देख कर हार मानना परा सत्ववान के प्राण वापिस करने लगे। तब से महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए बरगद के पेड़ की पूजा अर्चना करती है|

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वाट सावित्री  व्रत की पूजा विधि

महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं और वट वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा आराधना करती हैं। एक बांस की टोकरी मे सात तरह के अनाज रखते जिसे कपड़े के दो टुकड़े से ढ़क देते है दूसरी टोकरी में सावित्री की प्रतिमा रखते है फिर वट वृक्ष को जल,अक्षत,कुमकुम से पूजा करते है फिर लाल मौली से वृक्ष के सात बार चक्कर लगाते हुए ध्यान करते हैं। इसके बाद सभी महिलाएं सावित्री की कथा सुनाती है फिर दान दक्षिणा देतें है|


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